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प्र॒जाप॑ते॒स्तप॑सा वावृधा॒नः स॒द्यो जा॒तो द॑धिषे य॒ज्ञम॑ग्ने। स्वाहा॑कृतेन ह॒विषा॑ पुरोगा या॒हि सा॒ध्या ह॒विर॑दन्तु दे॒वाः ॥११ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्र॒जाप॑ते॒रिति॑ प्र॒जाऽप॑तेः। तप॑सा। वा॒वृ॒धा॒नः। व॒वृ॒धा॒नऽइति॑ ववृधा॒नः। स॒द्यः। जा॒तः। द॒धि॒षे॒। य॒ज्ञम्। अ॒ग्ने॒। स्वाहा॑कृते॒नेति॒ स्वाहा॑ऽकृतेन। ह॒विषा॑। पु॒रो॒गा॒ इति॑ पुरःऽगाः। या॒हि। सा॒ध्या। ह॒विः। अ॒द॒न्तु॒। दे॒वाः ॥११ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:29» मन्त्र:11


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिए, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् (अग्ने) अग्नि के तुल्य तेजस्वी ! आप (सद्यः) शीघ्र (जातः) प्रसिद्ध हुए (प्रजापतेः) प्रजारक्षक ईश्वर के (तपसा) प्रताप से (वावृधानः) बढ़ते हुए (स्वाहाकृतेन) सुन्दर संस्काररूप क्रिया से सिद्ध हुए (हविषा) होम में देने योग्य पदार्थ से (यज्ञम्) यज्ञ को (दधिषे) धारते हो, जो (पुरोगाः) मुखिया वा अगुआ (साध्या) साधनों से सिद्ध करने योग्य (देवाः) विद्वान् लोग (हविः) ग्राह्य अन्न का (अदन्तु) भोजन करें, उन को (याहि) प्राप्त हूजिये ॥११ ॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य सूर्य के समान प्रजा के रक्षक धर्म से प्राप्त हुए पदार्थ के भोगनेवाले होते हैं, वे सर्वोत्तम गिने जाते हैं ॥११ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

(प्रजापतेः) प्रजायाः पालकस्य (तपसा) प्रतापेन (वावृधानः) वर्द्धमानः (सद्यः, जातः) शीघ्रं प्रसिद्धः सन् (दधिषे) धरसि (यज्ञम्) (अग्ने) पावकवद्वर्त्तमान विद्वन् ! (स्वाहाकृतेन) सुष्ठु संस्कारक्रियया निष्पादितेन (हविषा) दातुमर्हेण (पुरोगाः) अग्रगण्या अग्रगामिनो वा (याहि) प्राप्नुहि (साध्या) साधनसाध्याः (हविः) अत्तव्यमन्नम् (अदन्तु) भुञ्जताम् (देवाः) विद्वांसः ॥११ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्ने ! त्वं सद्यो जातः प्रजापतेस्तपसा वावृधानः स्वाहाकृतेन हविषा यज्ञं दधिषे, ये पुरोगाः साध्या देवा हविरदन्तु तान् याहि प्राप्नुहि ॥११ ॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्याः सूर्यवत् प्रजापालका धर्मेण प्राप्तस्य पदार्थस्य भोक्तारो भवन्ति, ते सर्वोत्तमा गण्यन्ते ॥११ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे सूर्याप्रमाणे लोकांचे रक्षण करतात व धर्माने प्राप्त होणाऱ्या पदार्थांचा भोग करतात त्यांना सर्वोत्तम समजले जाते.